Anju Dixit

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लेखनी प्रतियोगिता -17-Mar-2022शिकार

जीवन का कैसा आधार,

एक कि सांस चलाने को दूसरे का शिकार।

 छोड़ तू मानव अपनी यह प्रवृत्ति
छोड़ दे करना यह मांसाहार।

माना कह नही पाते,
पर यह निरीह देते आह तुझे चित्कार।

प्रकृति भी कुपित हो गयी,
अब तो बदल मत कर यह  व्यवहार।

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7 Comments

Punam verma

18-Mar-2022 04:32 PM

Nice

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Dr. Arpita Agrawal

18-Mar-2022 09:17 AM

Nice

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Abhinav ji

18-Mar-2022 08:33 AM

Bahut khoob

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